नैमिषारण्य यात्रा भाग-1

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चित्रकूट यात्रा के दार्शनिक स्थल, रूट और बजट की जानकारी के लिए पिछले 4 ब्लॉग में विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी है जिनके लिंक इस ब्लॉग के अंत में मिलेंगे और यदि आप चित्रकूट की यात्रा के बारे में विडियो के माध्यम से जानना और देखना चाहते हैं तो हमारे YouTube Channel "Unexplored India" के साथ जुड़े | YouTube Channel पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और अगर विडियो पसंद आये तो चैनल को subscribe करें और विडियो को आगे शेयर करें ||

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नैमिषारण्य यात्रा प्रारम्भ

भारत के अलग-अलग राज्य एवं अलग-अलग शहरों में माँ भवानी दुर्गा के कई सिद्ध पीठ मंदिर हैं, जैसे ज्वाला जी, नैना देवी, कांगड़ा देवी, चंडी देवी, मनसा देवी, कैला देवी, पूर्णागिरी, वैष्णो देवी आदि | इनमे से ही एक सिद्ध पीठ मंदिर उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में भी उपस्थित है जिसका नाम है माँ ललिता देवी | माँ ललिता देवी मंदिर राजधानी लखनऊ से लगभग 100km. की दूरी पर स्थित एक बहुत ही प्राचीन और अतुलनीय तीर्थस्थल नैमिषारण्य में स्थित है | कहा जाता है कि यह स्थान पुरे विश्व का केंद्र बिंदु है और यहाँ पर सनातन हिन्दू धर्म के 33 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं | नैमिषारण्य जाते हुए रास्ते में और वहां भी कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनके बारे में आज मैं अपने ब्लॉग में बताने वाला हूँ |

            29th Nov 2020 को सुबह 6 बजे मैं अपने घर से नैमिषारण्य के लिए निकला लेकिन रास्ते में याद आया कि रास्ते में एक अद्भुत सिद्ध और अलौकिक स्थान है जिसका अपना अलग ही ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है और उस स्थान का नाम है माँ चन्द्रिका देवी मंदिर |

माँ चन्द्रिका देवी मंदिर

माँ चन्द्रिका देवी मंदिर लखनऊ से 25 km. और बक्शी का तालाब से 11 km. की दूरी पर आदिगंगा गोमती नदी के किनारे पर स्थित है | अट्ठारवीं सदी के पूर्वार्ध से यहाँ माँ चन्द्रिका देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है | कहा जाता है कि गोमती नदी के समीप स्थित महीसागर संगम तीर्थ के तट पर एक पुरातन नीम के वृक्ष के कोटर में नौ दुर्गा यहाँ नौ पिंडियों के रूप विद्यमान थीं जिनकी स्थापना मंदिर में कराई गयी है |

यहाँ के लोगों की मान्यता के अनुसार वनवास के समय पाण्डव द्रौपदी के साथ यहाँ आये थे और अश्वमेघ यज्ञ कर घोड़ा छोड़ा था जिससे यहाँ तात्कालिक राजा हंशध्व्ज द्वारा रोके जाने पर युधिस्ठिर की सेना से उन्हें युद्ध करना पड़ा था | युद्ध के समय सुधन्वा को माता के मंदिर में पूजा करते रहने के कारण खौलते हुए तेल में डाल दिया गया था लेकिन माँ की कृपा से उसके शरीर पर कोई आंच नहीं आई | मंदिर के पास बने महिसागर तीर्थ में घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने तप किया था ये तीर्थ मनोकामनापूर्ति और पापों को नाश करने वाला माना जाता है, मंदिर के तीन दिशाओं में गोमती नदी तथा एक ओर संगम है जिसका द्रश्य पर्यटन की द्रष्टि से महत्पूर्ण है |



हरिवंश बाबा अक्षय वट आश्रम

आस्था की जड़ें गहरीं हैं। सिर्फ जड़ें ही नहीं, शाखाएं भी असीमित हैं। शहर के कोलाहल से दूर। एक ऐसा अद्भुत स्थल, जहां आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा मेल है। हरिवंश बाबा अक्षय वट आश्रम। ढाई एकड़ में फैले इस वट वृक्ष की परिक्रमा करेंगे तो एकबारगी आभास होगा कि आप अनगिनत स्तंभों से बने किसी किले में हैं। पैदल चलेंगे तो ओर-छोर नहीं मिलेगा। एक वृक्ष इतना विशाल? यकीन नहीं होगा। भूमि को स्पर्श करती हुईं इस पवित्र बरगद की लटें अब जड़ पकड़ चुकी हैं। असंख्य शाखाएं चारों ओर कुछ यूं फैलीं हैं, जैसे कि मूल वृक्ष के लिए सुरक्षा घेरा बना लिया हो।

यहां सुरक्षा घेरे के बीच बने एक मंदिर में आपको हरिवंश बाबा की प्रतिमा के साथ रामजानकी और भगवती दुर्गा के दर्शन मिलेंगे। मंदिर के दाईं ओर मां सरस्वती का विग्रह है। बाईं ओर शिवजी, हनुमानजी की दिव्य प्रतिमाएं और 11 कुंडीय यज्ञशाला है। शांत और एकांत। मानो प्रकृति ने अपना आंचल फैला रखा हो। दर्शन करें और जब तक मन न भरे, एकांत का आनंद उठाएं। वैसे यहां जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण है कि जल्दी उठने का जी नहीं करेगा।





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