चित्रकूट की सम्पूर्ण यात्रा का वृत्तान्त रूट, स्थानों और बजट की जानकारी (2020) भाग -2
कामदगिरी पर्वत
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रामघाट पर स्नान करने के बाद यहीं पर बना हुआ मत्यगयेन्द्र नाथ जी मंदिर में दर्शन किया जाता है | इस मंदिर में चार शिवलिंग उपस्थित है और भारत में यही एक मात्र ऐसा स्थान जहाँ 4 शिवलिंग के एक साथ दर्शन होते हैं, इन चार शिव लिंग में से पहला शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ जिसको स्वयम्भू कहा जाता है दुसरे शिवलिंग की स्थापना श्री ब्रह्मा जी ने तीसरे शिवलिंग की स्थापना श्री राम चन्द्र जी ने और चतुर्थ शिवलिंग की स्थापना महर्षि अगस्त्य ने की थी | मत्यगयेन्द्र नाथ जी को चित्रकूट के राजा के रूप में माना जाता है इसलिए सबसे पहले यहाँ पे दर्शन करके तब चित्रकूट यात्रा प्रारम्भ की जाती है |
चित्रकूट का सबसे प्रसिद्ध और
महत्वपूर्ण स्थान है कामदगिरी पर्वत | इस पर्वत की दूरी रामघाट से लगभग 3 Km है | यहाँ जाने के लिए रामघाट से ऑटो टैक्सी या E-Rickshaw कर सकते जिसका किराया लगभग 20 Rs. लगता है | कामदगिरी पर्वत को आप
पुरे चित्रकूट में कहीं से भी देखेंगे तो उसका आकार आपको एक धनुष की भांति दिखाई
देगा | कामदगिरी पर्वत पर कामतानाथ जी का मंदिर है जिसके 4 मुखार्विन्द हैं और
इसी कामदगिरि पर्वत की जब परिक्रमा की जाती है तब ये चारों मुखार्विन्द रास्ते में
मिलते है| परिक्रमा का प्रारम्भ प्रथम मुखार्विन्द से होता है और समाप्ति चतुर्थ मुखार्विन्द
के बाद यह परिक्रमा लगभग 5 km की होती है, चतुर्थ मुखार्विन्द को छोड़ के बाकी के 3
मुखार्विन्द के दर्शन होते है लेकिन चतुर्थ मुखार्विन्द को अग्नि-मुख कहा जाता है इसलिए
यहाँ पर दर्शन नहीं होते हैं सिर्फ यहाँ बैठने का महत्व है | परिक्रमा मार्ग
में ही तुलसीदास जी के द्वारा लगाया हुआ बरगद का पेड़ भी पड़ता है और यहाँ पर पेड़ की
परिक्रमा करके मार्ग में आगे बढ़ना होता है कई लोग इस पेड़ पर धागा या चुनरी बांध के
मन्नत भी मानते हैं | परिक्रमा मार्ग में ही लक्ष्मण पहाड़ी भी है जहाँ से श्री
लक्ष्मण जी सदा माता सीता जी और श्री राम की सुरक्षा के लिए तत्पर रहते थे, यहाँ की लोकमान्यता है कि लक्ष्मण जी ने बिना सोये,
बिना खाए यहाँ पर रह कर अपने भाई और भाभी की सेवा और सुरक्षा की थी| लक्षमण पहाड़ी
के बाद परिक्रमा मार्ग पर आगे बढ़ने पर आपको भरत मिलाप मंदिर मिलता है जहाँ श्री भरत
जी अपने बड़े भाई श्री राम को मना कर अयोध्या वापिस ले जाने आये थे, जब दोनों
भाइयों का मिलन हुआ तो, दोनों भाइयों के बीच के अपार प्रेम को देख के यहाँ के पत्थरों
ने अपनी कठोरता को छोड़ दिया और मोम की भांति पिघल गये, वो पत्थर आज भी यहाँ देखे
जा सकते हैं और उन पर बने चरण चिन्ह भी इसी तरह सीता माता और कौशल्या माता का जहाँ
मिलन हुआ वहां भी उनके चरण चिन्ह और लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी के चरण चिन्ह भी देखे
जा सकते है | यहाँ से आगे चलेंगे तो आपको साक्षी गोपाल जी मंदिर मिलेगा जिसकी
परिक्रमा की जाती है और दीवारों पर उँगलियों से सीता-राम लिखा जाता है और फिर आगे
परिक्रमा पर बढ़ा जाता है | इसके बाद रस्ते में कई बड़े छोटे मंदिर, सीता कुण्ड आदि पड़ते
हैं और यहाँ से होते हुए आगे जाके चतुर्थ मुखार्विन्द के बाद परिक्रमा वहीँ से समाप्त
होती है जहाँ से प्रारंभ की जाती है |
नीचे दिए गए लिंक पर click करके आप मत्यगयेन्द्र नाथ जी मंदिर और कामदगिरी परिक्रमा की विडियो “Unexplored India” पर देख सकते हैं...
👉Click on the Link :- Journey to Chitrakoot Part-1
हनुमान धारा
चित्रकूट का एक और अति महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध
स्थान है जिसका नाम है “हनुमान धारा” | हनुमान धारा
रामघाट से लगभग 3 km की दूरी पर मध्य प्रदेश की सीमा में स्थित है | हनुमान धारा मंदिर
पहाड़ी पर लगभग 455 Ft. की ऊँचाई पर स्थित महाबली हनुमान जी का मंदिर है जहाँ तक
पहुचने के लिए लगभग 950 सीढियाँ
चढ़नी पड़ती हैं और उसके बाद एक बहुत ही अद्भुत और अद्वितीय, मनोरम स्थान पर उपस्थित
मंदिर में श्री हनुमान जी के दर्शन होते हैं | हनुमान धारा
मंदिर में एक श्री राम चन्द्र जी का छोटा सा मंदिर है और इसी मंदिर के पीछे पहाड़ी
में स्वयं उतपन्न हुई मूर्ति का विग्रह है जिसको देखने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे
यहाँ आने के बाद सारी थकान ख़त्म सी हो गयी हो | हनुमान धारा मंदिर में पुरे वर्ष 24
घंटे एक जल धारा हनुमान जी के पास गिरती रहती और यह जल कहाँ से आरहा है इसके बारे
में कोई नहीं जानता है और यह धारा यहाँ से नीचे बने हुए कुण्ड में गिरती है, इस
कुण्ड में जल सदा ही एक सामान रहता है न ही कभी बढ़ता है और न ही कभी कम होता है | कहा जाता है कि, जब हनुमान जी लंका दहन
करके वापिस आये थे तो उनके शरीर में बहुत अधिक जलन होने की वजह से वह बहुत बेचैन
थे, तब उन्होंने श्री राम से प्रार्थना की कि इस जलन को शांत करने का कोई उपाय
बताएं, तब श्री राम ने बाण चला के यहाँ पर पत्थरों के बीच में से गंगा जी को
उत्पन्न किया और हनुमान जी ने उस जल धारा के नीचे बैठ के अपनी जलन को शांत किया तबसे
यहाँ पर निरंतर यह जल धारा गिरती रहती है और कभी रूकती नहीं है | जल धारा का पानी
जो कुण्ड में एकत्र होता है उस पानी को लोग प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते हैं और साथ
में बोतल या किसी अन्य बर्तन म भर के घर भी ले जाते हैं | हनुमान धारा से लगभग 100
सीढियाँ और उपर जाने के बाद आपको सीता रसोई मिलेगी जहा माता सीता ने 5 ऋषियों
अत्रि, अगस्त्य आदि को भोजन कराया था और वहां पे माता सीता जी का रसोई घर भी मिलेगा
यहाँ पर खाने के लिए बहुत ही स्वादिष्ट रबड़ी मिलती है इसलिए जब भी अप जाएँ यहाँ पर
रबड़ी का सेवन करना न भूलें | हनुमान धारा जाने के लिए सीढियों क अलावा अब रज्जुमार्ग
(Ropeways) और सड़क मार्ग भी
बन गया है, लेकिन सड़क मार्ग का रस्स्ता अत्यधिक ख़राब और घने जंगलो के बीच से होकर जाता है इसलिए कभी अपने वाहन से न जाएँ हमेशा वहां के local वाहन से ही जाएँ |
अगर हनुमान धारा के बारे में और अधिक जानना और वहाँ के दर्शन करना चाहते हैं, तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें |
👉Click on the Link:- Journey to Chitrakoot Part-2 (Hanuman Dhara)
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